राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री
विधि मंत्री
भारत के महान्यायवादी
राज्य सभा द्वारा अनुमोदित किए जाने पर
लोक सभा की सलाह पर
प्रधानमंत्री की सलाह पर
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के साथ
दस
नौ
सात
पांच
27 जनवरी, 1950
28 जनवरी, 1950
29 जनवरी, 1950
30 जनवरी, 1950
गोलकनाथ
ए. के. गोपालन
केशवानंद भारती
मेनका गांधी
कतिपय न्यायाधीश दीर्घकालीन अवकाश पर जाते हैं।
स्थायी नियुक्ति के लिए कोई उपलब्ध नहीं होता ।
न्यायालय के समक्ष लंबित वादों में असाधारण वृद्धि होती है ।
न्यायालय के किसी सत्र के लिए न्यायाधीशों का कोरम नहीं होता ।
32 न्यायाधीश
30 न्यायाधीश
38 न्यायाधीश
26 न्यायाधीश
अनुच्छेद 127
अनुच्छेद 122
अनुच्छेद 126
अनुच्छेद 139
राष्ट्रपति
अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया
लोक सभा अध्यक्ष
सर्वोच्च न्यायालय
3
4
5
6
भारत के राष्ट्रपति को
भारत के मुख्य न्यायमूर्ति को
संसद को
विधि, न्याय और कंपनी कार्य मंत्रालय को
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त वेतन आयोग द्वारा
विधि आयोग द्वारा
संसद द्वारा
मंत्रिपरिषद द्वारा
सार्वजनिक महत्व के कानूनी या तथ्यात्मक मामलों में राष्ट्रपति को परामर्श दे सकता है।
सभी संवैधानिक मामलों में भारत सरकार को परामर्श दे सकता है।
विधिक मामलों में प्रधानमंत्री को परामर्श दे सकता है।
उपर्युक्त सभी व्यक्तियों को परामर्श दे सकता है।
अनुच्छेद 137
अनुच्छेद 130
अनुच्छेद 139
अनुच्छेद 138
केवल भारत में
केवल यू. के. में
केवल यू. एस. ए. में
भारत और यू. एस. ए. दोनों में
राष्ट्रपति
सर्वोच्च न्यायालय
उच्च न्यायालय
इनमें से कोई नहीं
1950 में संसद के एक अधिनियम द्वारा
भारतीय स्वाधीनता अधिनियम, 1947 के अधीन
भारत सरकार के अधिनियम, 1953 के अधीन
भारतीय संविधान के द्वारा
वर्तमान द्विस्तरीय संघीय व्यवस्था के स्थान पर तीन-स्तरीय व्यवस्था स्थापित करता है ।
विधि के समक्ष समानता के अधिकार को भाग 3 से हटाकर संविधान में अन्यत्र कहीं रखता है।
कार्यकारिणी की संसदीय व्यवस्था के स्थान पर अध्यक्षात्मक व्यवस्था रखता I
सर्वोच्च न्यायालय के भार को कम करने हेतु एक संघीय अपीलीय न्यायालय स्थापित करता है।
प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
उपरोक्त में से कोई नहीं
एम. हिदायतुल्ला
ए. एम. अहमदी
ए. एस. आनन्द
पी. एन. भगवती
सर्वोच्च न्यायालय में
उच्च न्यायालयों में
जनपद तथा सत्र न्यायालयों में
उपरोक्त सभी में
गोलकनाथ केस में
मिनर्वा मिल्स केस में
बैंक नेशनलाइजेशन केस में
टी. एम. पाई. फाउंडेशन केस में
भारत का राष्ट्रपति
संसद
भारत का मुख्य न्यायमूर्ति
विधि आयोग
राष्ट्रपति
संसद
मंत्रिपरिषद
सर्वोच्च न्यायालय
केवल सर्वोच्च न्यायालय में
केवल उच्च न्यायालय में
सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में
किसी भी न्यायालय में नहीं
अपनी पहल पर ।
तभी जब वह ऐसे परामर्श के लिए कहता है ।
तभी जब मामला नागरिकों के मूलभूत अधिकारों से संबंधित हो ।
तभी जब मामला देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करता हो ।
वैधिक प्रक्रिया
विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया
विधि का शासन
दृष्टांत और अभिसमय
परामर्शी अधिकारिता के अंतर्गत
अपीलीय अधिकारिता के अंतर्गत
मूल अधिकारिता के अंतर्गत
रिट अधिकारिता के अंतर्गत
केंद्र एवं राज्यों के बीच विवाद
राज्यों के परस्पर विवाद
मूल अधिकारों का प्रवर्तन
उपरोक्त सभी
सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
प्रधानमंत्री
राष्ट्रपति
विधि मंत्री
अनुच्छेद 131
अनुच्छेद 132
अनुच्छेद 134 A को मिलाकर अनुच्छेद 132 को पढ़ना
अनुच्छेद 134 A को मिलाकर अनुच्छेद 133 को पढ़ना
प्रधानमंत्री को
राष्ट्रपति को
किसी भी उच्च न्यायालय को
उपर्युक्त सभी को
उच्चतम न्यायालय कानून, 1966 द्वारा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145 द्वारा
संसद द्वारा बनाए गए विधेयक द्वारा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 द्वारा
संविधान
न्यायिक व्यवस्था
न्यायविदों के मत
संसदीय कानून
भारत के राष्ट्रपति द्वारा
संसद द्वारा प्रस्ताव पारित करके
संसद द्वारा विधि बनाकर
भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके राष्ट्रपति द्वारा
केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय में
केवल राज्यों के उच्च न्यायालयों में
केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरणों में
उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय दोनों में
इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण
गोलकनाथ बनाम स्टेट ऑफ पंजाब
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मामला
अजहर बनाम म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन
सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णय को परिवर्तित करने का अधिकार है ।
सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णय को परिवर्तित करने का अधिकार नहीं है।
केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश को निर्णय परिवर्तित करने का अधिकार है।
केवल विधि मंत्रालय को निर्णय परिवर्तित करने का अधिकार है।
संसदीय एक्ट के द्वारा
संवैधानिक संशोधन के द्वारा
न्यायिक पहल द्वारा
उपरोक्त में से कोई नहीं
इसे अपने सभी निर्णयों का अभिलेख रखना होता है ।
इसके सभी निर्णयों का साक्ष्यात्मक मूल्य होता है और इस पर किसी भी न्यायालय में प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है |
इसे अपनी अवमानना करने वालों को दंडित करने की शक्ति है ।
इसके निर्णयों के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती ।
राष्ट्रपति के अनुमोदन से
यदि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश मेजोरिटी (majority ) से यह तय करें
संसद के अनुमोदन से
राज्य विधान सभा के अनुरोध पर
केवल उच्च न्यायालयों को
केवल उच्चतम न्यायालय को
उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय को
जनपद न्यायालयों को
ऑस्ट्रेलिया
भारत
यू. एस. ए.
यू.के.
पब्लिक इन्टरेस्ट लिटिगेशन
पब्लिक इन्क्वायरी लिटिगेशन
पब्लिक इन्वेस्टमेंट लिटिगेशन
प्राइवेट इन्वेस्टमेंट लिटिगेशन
भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय लिए गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।
भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता
देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में, भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना वित्तीय आपात घोषत कर सकता है।
कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल संघ विधानमंडल की सहमति के बिना, विधि निर्मित नहीं कर सकते ।
प्रतिबद्ध न्यायपालिका से
जनहित याचिका से
न्यायिक पुनरावलोकन से
न्यायिक स्वतंत्रता से
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