> वर्षा के जल एवं अन्य जल के बहाव की समग्र व्यवस्था अपवाह प्रणाली के नाम से जानी जाती है।
> राज्य के अपवाह प्रणाली के निर्माण में जल की मात्रा, भूमि की संरचना, ढाल की तीव्रता, वनस्पति का घनत्व तथा मिट्टी की संरचना जैसे तत्व मुख्य भूमिका अदा करते हैं ।
> जल संसाधान विभाग, झारखण्ड सरकार के अनुसार राज्य का 1.59 लाख हेक्टेयर क्षेत्र जलीय स्रोतों द्वारा आच्छादित है, जो राज्य के कुल भूभाग का लगभग 2% है।
> 2018-19 में राज्य में 30,169 मिलियन घनमीटर जल संसाधन उपलब्ध है जिसमें 25,877 मिलियन घनमीटर (86%) सतही जल के रूप में तथा 4,292 मिलियन घनमीटर (14%) भूमिगत जल के रूप में मौजूद है।
> राज्य में औद्योगिक क्षेत्र हेतु 4,338 मिलियन घनमीटर जल की आवश्यकता है जबकि सिंचाई हेतु 3,813 मिलियन घनमीटर जल की आवश्यकता है। शहरी क्षेत्रों में 1616.35 लाख गैलन जल की आवश्यकता है जबकि यहाँ 734.35 लाख गैलन जल ही उपलब्ध है।
> राज्य के अधिकांश भाग पर आर्कियनकालीन चट्टान पाये जाने के कारण मृदा की छिद्रता (Porosity) काफी कम है। साथ ही पठारी क्षेत्र होने के कारण वर्षा का जल तीव्रता से प्रवाहित हो जाता है। परिणामतः भूमिगत जल की मात्रा काफी कम है।
> झारखण्ड में नदियाँ, जलप्रपात एवं गर्मकुण्ड अपवाह प्रणाली के मुख्य घटक हैं।
> झारखण्ड में नदियाँ
> सोन नदी के अतिरिक्त झारखण्ड की सभी नदियाँ बरसाती हैं जो जल के लिए मानसून पर निर्भर हैं। ये गरमी के महीने में सूख जाती हैं ।
> कठोर चट्टानी क्षेत्रों से प्रवाहित होने के कारण झारखण्ड की नदियाँ नाव चलाने हेतु उपयुक्त नहीं हैं। एकमात्र मयूराक्षी / मोर नदी का उपयोग नाव चलाने हेतु किया जाता है ।
> झारखण्ड की नदियों को प्रवाह की दिशा के अनुसार उत्तरवर्ती एवं पूरबवर्ती / दक्षिणवर्ती नदियों में विभाजित किया जा सकता है।
> वे नदियाँ जो पठारी भाग से निकलकर उत्तर की ओर प्रवाहित होती हुई गंगा या उसकी सहायक नदी में मिल जाती है, उन्हें उत्तरवर्ती नदी कहा जाता है। सोन, उत्तरी कोयल, पुनपुन, फल्गु, चानन आदि झारखण्ड की प्रमुख उत्तरवर्ती नदियाँ हैं।
> वे नदियाँ जो पठार के दक्षिण भाग से निकलकर पूर्व या दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हैं, उन्हें पूरबवर्ती / दक्षिणवर्ती नदी कहा जाता है। दामोदर, स्वर्णरेखा, बराकर, दक्षिणी कोयल, शंख, मयूराक्षी आदि झारखण्ड की प्रमुख दक्षिणवर्ती नदियाँ हैं।
> झारखण्ड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण
> गंगा नदी झारखण्ड राज्य के साहेबगंज जिले से होकर गुजरती है। अतः गंगा नदी के संरक्षण हेतु झारखण्ड राज्य की सहभागिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा झारखण्ड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया है।
> इस प्राधिकरण का गठन 20 फरवरी, 2009 को किया गया था।
> इस प्राधिकरण का मुख्यालय राँची में है।
> इस प्राधिकरण के अध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री हैं। प्राधिकरण के अन्य सदस्यों में राज्य सरकार के पर्यावरण मंत्री, वित्त मंत्री, शहरी विकास मंत्री, जल संसाधन एवं सिंचाई मंत्री तथा राज्य के मुख्य सचिव (सचिव) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा किसी अन्य मंत्री को प्राधिकरण का सदस्य बनाया जा सकता है। साथ ही प्राधिकरण पांच ऐसे सदस्यों को सहयोजित कर सकता है, जो नदी संरक्षण, जल विज्ञान, पर्यावरण य इंजीनियरी, सामाजिक संघटन और ऐसे अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हों ।
> प्राधिकरण की शक्तियाँ एवं कार्य निम्नवत् हैं-
1. प्राधिकरण को ऐसे सभी उपाय करने की शक्ति प्राप्त है, जिन्हें वह गंगा नदी के प्रदूषण के प्रभावी उपशमन और संरक्षण के लिए और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के विनिश्चयों या निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक समझे ।
2. प्राधिकरण राज्य स्तर पर सीवरेज अवसंरचना, जलागम क्षेत्र उपचार, बांध वाले मैदानों की सुरक्षा, लोक जागरूकता का प्रसार करने का प्रयास करेगा।
3. प्राधिकरण गंगा नदी के जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इसके प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण एवं उपशमन के उद्देश्य वाले क्रियाकलापों का विनियमन करेगा तथा राज्य में नदी पारिस्थितिकी और प्रबंधन से संबंधित उपाय करेगा।
4. प्राधिकरण जल का पुनःचक्रण और पुन: उपयोग, वर्षा जल संचयन और विकेंद्रित मल जलशोधन तंत्र और जलागम में भंडारण परियोजनाओं द्वारा जल संवर्धन को प्रोत्साहित करने का प्रयास करेगा।
5. प्राधिकरण जल संरक्षण पद्दतियों के माध्यम से जल की गुणता और पर्यावरणीय रूप से सतत विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिकीय बहाव का अनुरक्षण करने का प्रयास करेगा।
6. प्राधिकरण गंगा नदी में प्रदूषण निवारण, नियंत्रण और उपशमन के लिए कार्यान्वयन अभिकरणों द्वारा तैयार किए गए विभिन्न कार्यक्रमों या क्रियाकलापों को मानीटर करेगा तथा उनका पुनर्विलोकन करेगा।
7. प्राधिकरण राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के विनिश्चयों या निर्देशों के कार्यान्वयन के प्रयोजन के लिए भूमि अर्जन, अतिक्रमण, संविदाएं, विद्युत आपूर्ति आदि से संबंधित मुद्दों और ऐसे मुद्दों का निराकरण करने का प्रयास करेगा।
> प्राधिकरण की अधिकारिता का विस्तार झारखण्ड राज्य में होगा।
> झारखण्ड में जलप्रपात
> ऊँचाई से गिरते हुए जल को जलप्रपात कहा जाता है।
> झारखण्ड के पठारी क्षेत्रों में नदी के अपवाह मार्ग में मृदु शैलों के अपरदन या कठोर शैलों के अवरोध के कारण कई जलप्रपातों का निर्माण हुआ है जिनमें से प्रमुख जलप्रपात निम्न हैं: –
> झारखण्ड में गर्म जलकुंड
> वह स्थान जहाँ भौमिक जलस्तर तथा धरातल का प्रतिच्छेदन हो जाता है, वहाँ का जल का प्रवाह सतह की ओर होने लगता है, इसे गर्म जलकुण्ड कहा जाता है।
> गर्म जलकुंड मृत ज्वालामुखी या भूगर्भ में स्थित रेडियो सक्रिय खनिजों से संबंधित होते हैं। इनमें पर्याप्त मात्रा में खनिज लवण, गंधक आदि पाये जाते हैं।
> इन जलकुंडों के जलों में रोगनाशक शक्ति पायी जाती है जो गठिया, खून की कमी तथा कई रोगों के इलाज में सहायक होते हैं।
> झारखण्ड राज्य में प्रमुख जलकुण्डों का विवरण निम्न है : –
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..