> वन स्थिति रिपोर्ट-2019 के अनुसार झारखण्ड में राज्य के कुल क्षेत्रफल के 23,611.41 वर्ग किमी. पर वन पाये जाते हैं जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 29.62% है।
> झारखण्ड में भारत के कुल वन क्षेत्र का 3.31% विस्तृत है । वन क्षेत्र के विस्तार के प्रतिशत की दृष्टि से झारखण्ड का देश के राज्यों में 10वाँ स्थान है।
> राज्य में प्रति व्यक्ति वन एवं पेड़ों का आच्छादन 0.08 (वन स्थिति रिपोर्ट- 2019 ) हेक्टेयर है।
> झारखण्ड में देश के राष्ट्रीय औसत ( 21.67% ) से अधिक वन क्षेत्र ( 29.62% ) का विस्तार है, परन्तु यह राष्ट्रीय वन नीति के लक्ष्य (33%) से कम है।
> भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून द्वारा प्रकाशित वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार झारखण्ड राज्य में कुल 26475 वर्ग किमी० क्षेत्रफल पर वन एवं पेड़ों का विस्तार है ।
> झारखण्ड सरकार ने राज्य में वन क्षेत्र को 33 प्रतिशत से अधिक करने के उद्देश्य से वन नीति का निर्माण किया है तथा इसमें निम्न प्रमुख बातों का उल्लेख है –
> प्रत्येक गाँव में एक वन समिति होगी, जिसमें गाँव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य होगा।
> ग्रामीणों की आवश्यकता के अनुसार वृक्षारोपण किया जाएगा।
> वनोत्पादों की सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीद की जाएगी।
> वनों की सुरक्षा का भार ग्रामीणों और वन विभाग के ऊपर होगा।
> इस नीति के तहत राज्य में 10,000 से अधिक वन समितियों का गठन किया गया है।
> झारखण्ड में वनों की श्रेणियाँ
1. संरक्षित वन (Protected Forest )
> वैसे वन जिन पर मनुष्यों को कुछ प्रतिबंधों के तहत पशु चराने एवं लकड़ियों को काटने की अनुमति प्राप्त होती है, संरक्षित वन कहलाते हैं। इस प्रकार के वनों में बिना अनुमति के सभी प्रकार की गतिविधियों पर प्रतिबंध होता है।
> झारखण्ड में कुल 19,185 वर्ग किमी. भू-भाग पर संरक्षित वनों का विस्तार है जो राज्य के कुल वन क्षेत्र का 81.28% है।
> संरक्षित वनों का सर्वाधिक विस्तार हजारीबाग जिले में है। इसके बाद क्रमशः गढ़वा, पलामू तथा राँची जिले का स्थान है।
2. आरक्षित बन (Reserved Forest )
> वैसे वन जिनमें मनुष्यों के पशु चराने एवं लकड़ी काटने पर पूर्णतः प्रतिबंध हो, आरक्षित वन कहलाते हैं।
> झारखण्ड में कुल 4,387 वर्ग किमी. भूमि पर आरक्षित वनों का विस्तार है जो राज्य के कुल वन क्षेत्र का 18.58% है।
> राज्य का सबसे बड़ा आरक्षित वन- क्षेत्र पोरहाट एवं कोल्हान वन क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त राजमहल एवं पलामू के वन क्षेत्र भी आरक्षित वनों के अंतर्गत आते हैं।
3. अवर्गीकृत वन (Unclassed Forest)
> वैसे वन जो आरक्षित या संरक्षित वनों की श्रेणी में नहीं आते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं।
> झारखण्ड में कुल 33 वर्ग किमी. भूमि पर अवर्गीकृत वनों का विस्तार है जो राज्य के कुल वन क्षेत्र का मात्र 0.14% है।
> राज्य का सबसे बड़ा अवर्गीकृत वन क्षेत्र साहेबगंज है। इसके बाद क्रमशः पश्चिमी सिंहभूम, दुमका तथा हजारीबाग का स्थान आता है।
> झारखण्ड में वन प्रदेश
1. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन प्रदेश
> 120 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आर्द्र पतझड़ वन पाये जाते हैं। इसी कारण ऐसे क्षेत्र को आर्द्र पर्णपाती वन प्रदेश कहा जाता है ।
> ये सागरीय मौसम से प्रभावित जलवायु क्षेत्र हैं जहाँ अधिक वर्षा होती है।
> झारखण्ड के सिंहभूम, दक्षिणी राँची, दक्षिणी लातेहार एवं संथाल परगना क्षेत्र में इन वनों का विस्तार है।
> इन वनों में साल, शीशम, जामुन, पलाश, सेमल, महुआ एवं बांस के वृक्ष पाये जाते हैं।
> साल के वृक्ष की ऊँचाई अधिक होती है तथा इसे पर्णपाती वनों का राजा भी कहा जाता है।
> राज्य के 2.66% भू-भाग उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन प्रदेश के अंतर्गत आते हैं।
2. उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन प्रदेश
> 120 सेमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क पतझड़ वनों का विकास हुआ है। इसी कारण ऐसे क्षेत्र को शुष्क पर्णपाती वन प्रदेश कहा जाता है।
> झारखण्ड के पलामू, गिरिडीह, सिंहभूम, हजारीबाग, धनबाद एवं संथाल परगना में इन वनों का विस्तार है।
> इनमें घास एवं झाड़ियों की प्रधानता होती है। इसके अतिरिक्त बांस, नीम, पीपल, खैर, पलाश, कटहल एवं गूलर के वृक्ष इस वन प्रदेश में पाये जाते हैं।
> राज्य के 93.25% भू-भाग उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन प्रदेश के अंतर्गत आते हैं।
> झारखण्ड में वनोत्पाद
1. मुख्य वनोत्पाद
(a) साल (Sal) / सखुआ (Sakhua)
> अत्यंत कठोर होने के कारण साल की लकड़ी का प्रयोग इमारती लकड़ियों, फर्नीचर बनाने, रेल के डिब्बे, पटरियों के स्लैब आदि के निर्माण के लिए किया जाता है।
> साल के पुष्पों को सरई फूल तथा इसके बीजों से निकाले जाने वाले तेल को कुजरी तेल कहा जाता है। इस तेल का प्रयोग प्राकृतिक चिकित्सा के लिए किया जाता है।
> यह झारखण्ड का राजकीय वृक्ष है।
(b) शीशम (Siscoo)
> अत्यंत मजबूत होने के कारण इसका प्रयोग फर्नीचर बनाने में किया जाता है।
(c) महुआ (Mahua)
> यह झारखण्ड का सर्वाधिक उपयोगी वृक्ष है क्योंकि इसकी लकड़ी, फल, फूल तथा बीज सभी का उपयोग होता है।
> इसकी लकड़ी काफी मजबूत होने के कारण दरवाजे-खम्बे आदि बनाने हेतु, फूल शराब बनाने हेतु, फल सब्जी के रूप में तथा बीज तेल निकालने हेतु प्रयुक्त होता है ।
(d) सागौन (Teak)
> इसकी लकड़ी काफी मजबूत और सुन्दर होती है जिसका प्रयोग फर्नीचर, रेल के डिब्बे, हवाई जहाज आदि के लिए किया जाता है।
(e) सेमल (Semal)
> इसकी लकड़ी हल्की, मुलायम और सफेद होती है जिसका प्रयोग पैकिंग पेटियों, तख्तियां तथा खिलौना बनाने के लिए किया जाता है।
> इससे रूई ( cotton) का उत्पादन भी किया जाता है।
(f) गम्हार ( Gamhar)
> इसकी लकड़ी हल्की, मुलायम तथा चिकनी होने के साथ-साथ काफी टिकाऊ होती है जिसका उपयोग फर्नीचर निर्माण हेतु किया जाता है।
> लकड़ियों पर नक्काशी की दृष्टि से यह अत्यंत उपयोगी है।
(g) जामुन (Jambo)
> पानी में भी अत्यधिक दिनों तक खराब नहीं होने का गुण पाये जाने के कारण इसका सर्वाधिक प्रयोग कुओं के आधार के रूप में किया जाता है। इसका अन्य प्रयोग फर्नीचर निर्माण हेतु किया जाता है।
> इसके बीजों से दवा निर्मित किया जाता है तथा इसके फलों का उपयोग खाने के लिए होता है।
(h) आम (Mango)
> इसकी सुलभता के कारण इसका प्रयोग फर्नीचर व दरवाजे आदि बनाने के लिए किया जाता है।
(i) कटहल (Jackfruit )
> इसकी लकड़ी का प्रयोग इमारतों के लिए तथा इसके फल का उपयोग खाने हेतु किया जाता है।
(j) केन्दु (Kendu)
> इसकी लकड़ियों का प्रयोग मुख्य उत्पाद के रूप में तथा इसकी पत्तियों का उपयोग गौण उत्पाद के रूप में किया जाता है।
> इसका प्रयोग प्रायः गौण उत्पाद के रूप में ही अधिक किया जाता है।
2. गौण वनोत्पाद
(a) लाह (Lac)
> भारत में कुल लाह उत्पादन का 50% झारखण्ड में उत्पादित किया जाता है। यह लाह उत्पादन की दृष्टि से भारत का अग्रणी राज्य है।
> लाह उत्पादन हेतु आवश्यक निम्न भौगोलिक दशाएँ झारखण्ड में आसानी से उपलब्ध हैं:–
> ऊँचाई – समुद्र तल से 350 मी०
> तापमान – 12°C तक
> वर्षा – 150 सेमी० से कम ०
> लाह की चार किस्में वैशाखी लाह, जेठवी लाह, कतकी लाह एवं अगहनी लाह होती है।
> झारखण्ड में कुल लाह उत्पादन का 82% वैशाखी लाह से प्राप्त होता है।
> झारखण्ड में लाह की खेती से स्वरोजगार एवं अतिरिक्त आय उपलब्ध कराने हेतु राँची, खूँटी, लातेहार, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, दुमका, सरायकेला आदि जिलों में 1750 वन प्रबंधन समिति का गठन वर्ष 2014-15 में किया गया है।
> राज्य के राँची जिले के नामकुम में लाह से संबंधित शोध कार्य हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अंतर्गत 1924 ई. में भारतीय लाह शोध अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई थी ।
> लाह/लाख (Lac) शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'लक्ष' शब्द से हुयी है।
> JHAMFCOFED
> झाम्फ्कोफेड का पूरा नाम (The Jharkhand State Minor Forest Produce Co-operative Development and Marketing Federation Limited - JHAMFCOFED) है।
> इसकी स्थापना झारखण्ड सरकार द्वारा 2007 में की गयी थी।
> इसका प्रमुख उद्देश्य मध्यस्थों के शोषण से वनवासियों की सुरक्षा करना तथा गौण वनोत्पाद उद्योगों को सहकारिता के आधार पर प्रोत्साहित करना है।
> झाम्फ्कोफेड की संरचना दो - स्तरीय है। इसके शीर्ष पर झाम्फ्कोफेड है तथा इसके निचले स्तर पर 88 प्राथमिक सहकारी समितियाँ कार्यरत हैं।
(b) केन्दु पत्ता (Kendu Leaves)
> यह राजस्व प्राप्ति की दृष्टि से झारखण्ड का प्रमुख गौण उत्पाद है।
> इसका प्रयोग बीड़ी एवं तम्बाकू के निर्माण हेतु किया जाता है।
> राज्य में केन्दु पत्ता के प्राथमिक संग्राहकों को केन्दु पत्ता के संग्रहण के बदले उचित मजदूरी के भुगतान हेतु झारखण्ड राज्य केन्दु पत्ता नीति - 2015 को अधिसूचित किया गया है।
(c) तसर रेशम (Wild Silk )
> तसर रेशम के उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड का देश में प्रथम स्थान है। यहाँ देश का 60% तसर रेशम उत्पादित किया जाता है।
> रेशम के कीड़ों के पालन हेतु झारखण्ड में साल, शहतूत, आसन, अर्जुन आदि वृक्षों का उपयोग किया जाता है।
> राज्य की राजधानी राँची के नगड़ी में भारत सरकार द्वारा 'तसर अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई है।
> रेशम आधारित उत्पादों के विकास हेतु सन् 2006 में राज्य सरकार द्वारा 'झारखण्ड सिल्क, टेक्सटाइल एवं हैंडीक्रॉफ्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (झारक्रॉफ्ट ) ' का गठन किया गया है।
> झारक्रॉफ्ट द्वारा झारखण्ड के चार जिलों में रेशम पार्कों की स्थापना की गयी है।
(d) बांस (Bamboo)
> झारखण्ड में जनजातीय समुदायों के द्वारा घरेलू सामानों के निर्माण एवं जीविकोपार्जन हेतु बांस का उत्पादन किया जाता है।
> इसका व्यापारिक उपयोग कागज उद्योग एवं घर निर्माण में किया जाता है।
> झारखण्ड राज्य में कुल 17 जनजातीय जिलों (भारत - 218) की पहचान की गयी है। जनजातीय जिलों की संख्या के मामले में भारत के राज्यों में झारखण्ड राज्य का स्थान तीसरा (मध्य प्रदेश - 24, असम-19) है।
> 2017 - 19 के बीच भारत के जनजातीय क्षेत्रों में Inside RFA की मात्रा में 471 वर्ग किमी. की कमी दर्ज की गयी है, जबकि इसी अवधि में झारखण्ड के जनजातीय जिलों में Inside RFA की मात्रा में 15 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्ज की गयी है।
> अन्य तथ्य
> नमामि गंगे परियोजना में शामिल क्षेत्र का मात्र 4.15% झारखण्ड राज्य में विस्तारित है, जबकि इस परियोजना के तहत शामिल कुल वन क्षेत्र का 14.48% झारखण्ड राज्य में विस्तारित है।
> मुख्यमंत्री जन-वन योजना के तहत् वित्तीय वर्ष 2019-20 में झारखण्ड राज्य में 5,34,204 पौधों का पौधारोपण किया गया है।
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