NCERT MCQs | प्राचीन इतिहास | वैदिक युग

वैदिक युग

NCERT MCQs | प्राचीन इतिहास | वैदिक युग

NCERT MCQs | प्राचीन इतिहास | वैदिक युग

आर्यों का मूल स्थान एवं प्रसार

1. भारतीय उपमहाद्वीप में आर्यों के आगमन के संबंध में कौन-सा कथन सत्य है?
(a) आर्यों के सभी कबीलों का आगमन एक साथ हुआ।
(b) आर्यों का संघर्ष दास तथा दस्यु नामक स्थानीय जनों से हुआ।
(c) दास जनों का उल्लेख प्राचीन सीरियाई साहित्य में मिलता है।
(d) दस्यु मध्य एशिया के मूल निवासी थे।
उत्तर - (b)
व्याख्या- भारतीय उपमहाद्वीप में आर्यों के आगमन के संबंध में कथन (b) सत्य है, क्योंकि 1500 ई. पू. के आस-पास आर्यों का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ। इस दौरान आर्यों को स्थानीय जनों से संघर्ष करना पड़ा था। इन स्थानीय जनों में दास तथा दस्यु प्रमुख रूप से शामिल थे। इस संघर्ष में आर्यों की जीत हुई थी।
कथन (a), (c) और (d) असत्य हैं, क्योंकि आर्यों के कबीले भारत में एक साथ नहीं, बल्कि अलग-अलग आए थे। दास जनों का उल्लेख सीरियाई साहित्य से नहीं, बल्कि ईरानी साहित्य में मिलता है। दस्यु मध्य एशिया के नहीं, बल्कि भारत के मूल निवासी थे।
2. इतिहासकारों के अनुसार भारत आगमन के समय आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
(a) कृषि कार्य
(b) शिकार
(c) पशुचारण
(d) खाद्य संग्राहक
उत्तर - (c)
व्याख्या- इतिहासकारों के अनुसार भारत आगमन के समय आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुचारण था। आर्यों के जीवन में कृषि का स्थान गौण था। इसका मुख्य कारण यह था कि वे घुमंतू जीवन शैली से संबंध रखते थे। वे कई पर्वतों को पार कर भारत आए थे। ऐसे में उनकी जीविका का मुख्य साधन पशुचारण था। यूरेशिया में बड़े-बड़े घास के मैदान होने से पशुचारण उनके लिए आसान व्यवसाय था।
3. वैदिक संस्कृति के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. सरस्वती आर्यों की पवित्र नदी थी।
2. सरस्वती को ऋग्वेद में 'नदीतमा' कहा गया है।
3. आर्यों का भारत में आरंभिक निवास स्थान 'सप्त सैंधव प्रदेश ' कहलाता था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) 1 और 3
उत्तर - (c)
व्याख्या- वैदिक संस्कृति के संदर्भ में दिए गए सभी कथन सत्य हैं। ऋग्वेद के नदी सूक्त में 25 नदियों का वर्णन है। इसमें सरस्वती को आर्यों की सर्वाधिक पवित्र नदी माना गया है। साथ ही ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा ( नदियों में प्रमुख) कहा गया है।
ऋग्वेद में आर्यों का भारत में आरंभिक निवास स्थान 'सप्त सैंधव प्रदेश' था। सात प्रमुख नदियों की उपस्थिति के कारण ही इस क्षेत्र का नाम 'सप्त सैंधव' पड़ा।
4. भरत और त्रित्सु नामक आर्य वंश कबीले के पुरोहित निम्नलिखित में से कौन थे? 
(a) ऋषि वशिष्ठ
(b) ऋषि विश्वामित्र 
(c) ऋषि गृत्मस
(d) ऋषि अंगीरस
उत्तर - (a)
व्याख्या- भरत और त्रित्सु नामक आर्य वंश कबीले के पुरोहित ऋषि वशिष्ठ थे। आर्य कई कबीलों में विभक्त थे, उनमें भरत तथा त्रित्सु दोनों आर्यो के शासक कबीले थे । 'भरत' कबीले के नाम पर ही हमारे देश का नाम 'भारत' पड़ा था। इन दोनों कबीलों को पुरोहित वशिष्ठ का सान्निध्य प्राप्त था। ऋग्वैदिक काल में सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था।
5. आर्यों की जानकारी के स्रोतों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है? 
(a) ऋग्वेद में 'आर्य' शब्द का उल्लेख 36 बार हुआ है।
(b) कस्साइट अभिलेख (इराक) से आर्य नाम का उल्लेख मिलता है।
(c) मितन्नी अभिलेख (सीरिया) से आर्यों की जानकारी मिलती है।
(d) भारतीय अभिलेख 'हाथीगुम्फा' से आर्यों की जानकारी मिलती है।
उत्तर - (d)
व्याख्या- आर्यों की जानकारी के स्रोतों के संबंध में कथन (d) सत्य नहीं है, क्योंकि हाथीगुम्फा अभिलेख का संबंध आर्यों से नहीं, बल्कि कलिंग नरेश खारवेल से है। यह अभिलेख ओडिशा के भुवनेश्वर में उदयगिरि की पहाड़ी में स्थित यह अभिलेख प्राकृत भाषा में है।
ऋग्वेद हिंदू-यूरोपीय भाषाओं का सबसे पुराना ग्रंथ है । इस वेद में 'आर्य' शब्द का उल्लेख 36 बार हुआ है। इसके अतिरिक्त इराक में मिले लगभग 1600 ई. पू. के कस्साइट अभिलेखों में तथा सीरिया में मितन्नी अभिलेखों में आर्य नाम का उल्लेख मिलता है।
6. 'पंच जन' के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. यह आर्यों के पाँच कबीलों का समूह था।
2. पाँचों कबीलों की आपस में शत्रुता थी।
3. तुर्वस एक अनार्य कबीला था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 2 
(b) 1, 2 और 3
(c) 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर - (a)
व्याख्या- 'पंच जन' के संबंध में कथन (1) और (2) सत्य हैं। परंपरानुसार आर्यों के पाँच कबीले थे, जिन्हें 'पंचजन' कहा जाता था। इनमें अनु, द्रुहु, पुरु, तुर्वस तथा यदु शामिल थे।
वैदिक आर्यों को दो तरह के संबंधों का सामना करना पड़ा, एक ओर उनकी आर्य-पूर्व जनों से लड़ाई हुई, तो दूसरी ओर अपने ही लोगों के बीच आंतरिक जनजातीय संघर्षों से आर्य समुदाय दीर्घ काल तक जर्जर रहा ।
कथन (3) असत्य है, क्योंकि तुर्वस एक अनार्य कबीला नहीं था, बल्कि यह पंचजन में शामिल आर्य कबीला था।
7. ऋग्वेद में उल्लिखित प्रसिद्ध दस राजाओं का युद्ध ( दसराज्ञ युद्ध) किस नदी के किनारे लड़ा गया था?
(a) परुष्णी
(b) सरस्वती
(c) विपाशा
(d) अस्किनी
उत्तर - (a)
व्याख्या ऋग्वेद में उल्लिखित प्रसिद्ध दस राजाओं का युद्ध (दसराज्ञ युद्ध) परुष्णी (वर्तमान में रावी) नदी के तट पर लड़ा गया था।
ऋग्वेद में दसराज्ञ युद्ध का वर्णन है, जिसमें भरत जन के स्वामी सुदाश ने दस राजाओं के संघ को हराया था। इसमें पाँच आर्य और पाँच आर्योत्तर जन के प्रधान थे।
8. भारतीय आर्य भाषा के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. आर्य भाषा वैदिक संस्कृति का आधार थी।
2. आर्य भाषा-भाषियों का आगमन 1000 ई. पू. में हुआ था।
3. आर्य हिंद यूरोपीय परिवार की भाषा बोलते थे।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
(a) 1 और 3 
(b) केवल 2
(c) केवल 1
(d) 1, 2 और 3
उत्तर - (b)
व्याख्या- भारतीय आर्य भाषा के संबंध में कथन (2) असत्य है, क्योंकि भारत में आर्य भाषा-भाषियों का आगमन 1000 ई. पू. में नहीं, बल्कि 1500 ई. से कुछ पहले हुआ था। उनके आगमन का कोई ठोस पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता है। आर्यों के द्वारा प्रयोग में लाए गए हथियारों को आधार बनाकर ऐसा माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में हड़प्पा सभ्यता के पतन के पश्चात् 1500 ई. पू. में आर्यों का आगमन हुआ तथा ऋग्वैदिक काल की शुरुआत हुई। इस प्रकार आर्य भाषा, जो हिंद - यूरोपीय परिवार की भाषा थी, वैदिक संस्कृति का आधार बनी।
9. जिन क्षेत्रों में आर्यभाषियों की संस्कृति का विकास हुआ वहाँ एक विशेष प्रकार की मिट्टी के बर्तनों का निर्माण होता था, इसे क्या कहा जाता था ?
(a) चित्रित धूसर मृद्भांड
(b) गैरिक मृद्भांड  
(c) जोरवे मृद्भांड
(d) झूकर मृद्भांड 
उत्तर - (a)
व्याख्या- आर्य भाषी क्षेत्रों में विकसित मिट्टी के बर्तनों को चित्रित धूसर मृद्भांड कहा जाता है तथा इस संस्कृति को चित्रित धूसर मृद्भांड संस्कृति (Painted Greyware Culture) कहते हैं। यह मिट्टी के बर्तनों की एक परंपरा है, जिसमें स्लेटी रंग के बर्तनों पर काले रंग से डिजाइन बनाया जाता था। गंगा, सतलुज तथा घग्घर-हकरा नदियों के मैदान इस संस्कृति के केंद्रीय स्थल हैं।
10. आर्यों के प्रसार के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. आर्य सबसे पहले पंजाब आकर बसे ।
2. कालांतर में कुरुक्षेत्र तक आर्यों का प्रसार हुआ। 
3. नर्मदा के मुहाने तक आर्यों का वास था। 
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 3
(b) 1, 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) केवल 1
उत्तर - (c)
व्याख्या- आर्यों के प्रसार के संबंध में कथन (1) और (2) सत्य हैं। आर्य सबसे पहले भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित पंजाब में आकर बसे थे । यहाँ सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी तथा सतलुज नदियाँ बहती थीं। इसी भूमि को आर्यों ने अपने आवास के लिए निर्धारित किया था। धीरे-धीरे आर्यों का प्रसार दिल्ली तथा कुरुक्षेत्र (हरियाणा) तक हो गया।
कथन (3) असत्य है, क्योंकि नर्मदा नदी के मुहाने तक आर्यों का विस्तार नहीं हुआ था। नर्मदा नदी के दक्षिण में (दक्षिण भारत में) आर्यों के प्रसार तथा आर्यीकरण का श्रेय ऋषि अगस्तस्य को जाता है, जो कालांतर में हुआ था।

ऋग्वैदिक काल

1. ऋग्वैदिक आर्यों के जीवन के संदर्भ में निम्न कथनों पर विचार कीजिए 
1. ऋग्वैदिक आर्यों का जीवन पशुचारण पर आधारित था।
2. ऋग्वेद में 'गविष्टि' युद्ध का पर्याय है।
3. ऋग्वैदिक लोगों का भूमि पर निजी स्वामित्व नहीं था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है / हैं?
(a) 1 और 2 
(b) केवल 2
(c) 1,2 और 3
(d) 1 और 3
उत्तर - (c)
व्याख्या- ऋग्वैदिक आर्यों के जीवन के संदर्भ में दिए गए सभी कथन सत्य हैं। ऋग्वैदिक आर्य पशुचारक थे। गाय चराने तथा खेती करने का पेशा उनकी आजीविका का आधार था। ऋग्वेद में युद्ध के लिए 'गविष्टि' शब्द प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ 'गायों का अंवेषण' होता है। कृषि की ओर बढ़ते ऋग्वैदिक लोगों के पास निजी स्वामित्व वाली भूमि नहीं थी।
2. ऋग्वैदिक काल में आर्यों के प्रशासन तंत्र में युद्ध का फ कौन करता था ? 
(a) जनस्य गोप 
(b) ग्रामणी
(c) राजन्
(d) विदथ
उत्तर - (c)
व्याख्या ऋग्वैदिक काल में आर्यों के प्रशासन तंत्र में युद्ध का नेतृत्व राजन् करता था। ऋग्वैदिक काल में आर्यों का प्रशासन तंत्र कबीले के प्रधान के हाथों में था, प्रधान ही राजन् (अर्थात् राजा) कहलाता था। इस काल में राजा की सहायता के लिए अनेक अधिकारी होते थे, जिनमें पुरोहित, ग्रामणी, व्रजपति, कुलपा आदि प्रमुख रूप से शामिल थे।
3. ऋग्वैदिक काल में राज्य व्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. राजा का पद आनुवंशिक हो गया था।
2. सभा और समिति राजनीतिक संस्थाएँ थीं।
3. महिलाओं को सभा एवं समिति में भाग लेने का अधिकार था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
(a) केवल 1 
(b) 1 और 3
(c) केवल 3
(d) 2 और 3
उत्तर - (c)
व्याख्या- ऋग्वैदिक काल में राज्य व्यवस्था के संबंध में कथन (3) असत्य है, क्योंकि महिलाओं को सभा एवं विदथ में भाग लेने का अधिकार प्राप्त था, न कि सभा एवं समिति में विदथ आर्यों की सर्वाधिक प्राचीन संस्था थी। इसे जनसभा भी कहा जाता था।
सभा समृद्ध एवं अभिजात लोगों की संस्था थी वहीं समिति राजा की नियुक्ति, पदच्युत करने व उस पर नियंत्रण रखने का कार्य करती थी ।
कथन (1) और (2) सत्य हैं। ऋग्वैदिक काल में राजा का पद आनुवंशिक हो गया था अर्थात् राजा का बेटा ही राजा बनता था। सभा तथा समिति दो महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्थाएँ थीं।
4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. ऋग्वेद काल में वशिष्ठ और विश्वामित्र महान पुरोहित थे। 
2. वशिष्ठ उदार तथा विश्वामित्र रूढ़िवादी थे ।
3. विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की थी।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 3 
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 1
उत्तर - (a)
व्याख्या- दिए गए कथनों में से कथन (1) और (3) सत्य हैं। ऋग्वैदिक दैनिक प्रशासन में कुछ अधिकारी राजा की सहायता करते थे। सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था। वशिष्ठ तथा विश्वामित्र दो महान पुरोहित थे।
विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए गायत्री मंत्र की रचना की। गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है।
कथन (2) असत्य है, क्योंकि ऋषि वशिष्ठ रूढ़िवादी तथा विश्वामित्र उदार प्रवृत्ति के पुरोहित थे।
5. ऋग्वैदिक काल में 'बलि' को निम्नलिखित में से किस रूप में परिभाषित किया गया है? 
(a) एक स्वैच्छिक कर के रूप में
(b) पशुओं की बलि के रूप में
(c) राजा के राजत्व अधिकार के रूप में
(d) स्थानीय जन कबीले के रूप में
उत्तर - (a)
व्याख्या- ऋग्वैदिक काल में 'बलि' एक स्वैच्छिक कर था। ऋग्वेद में किसी ऐसे कर्मचारी का विवरण ज्ञात नहीं होता, जो कर संग्रह का कार्य करता हो । संभवतः प्रजा राजा को उसका अंश स्वेच्छा से देती थी, जिसका नाम बलि अर्थात् चढ़ावा था। यह वस्तु या मुद्रा के रूप में होता था। विनिमय के माध्यम के रूप में 'निष्क' का उल्लेख मिलता है।
6. राजा की सैन्य शक्ति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. राजा के साथ स्थायी सेना थी।
2. व्रात, गण और सर्घ लड़ाकू कबीला था।
3. 'ग्राम' स्थायी सेना का हिस्सा था।
4. सैनिक तत्त्व प्रबल था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
(a) 1, 2 और 3
(b) 2 और 3 
(c) 1 और 3
(d) केवल 1
उत्तर - (c)
व्याख्या- राजा की सैन्य शक्ति के संबंध में कथन (1) और (3) असत्य हैं, क्योंकि ऋग्वैदिक काल में राजा के पास स्थायी सेना नहीं थी, बल्कि युद्ध के समय सेना का गठन किया जाता था। ग्राम स्थायी सेना का हिस्सा नहीं था, , बल्कि जब युद्ध का समय आता था, तो ये राजा की सहायता करता था। ग्रामणी ग्राम का प्रधान होता था, वह लड़ाकू दलों का प्रधान था।
कथन (2) और (4) सत्य हैं। व्रात, गण, ग्राम और सर्घ नाम से विदित विभिन्न कबीलाई टोलियाँ लड़ाई लड़ती थीं। इस काल में सैनिक तत्त्व प्रबल था।
7. ऋग्वैदिक कालीन सामाजिक संगठन 'जन' के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. जन में सदस्यों की कुल संख्या 100 से अधिक होती थी।
2. ऋग्वेद में जन शब्द का प्रयोग 275 बार हुआ है।
3. ऋचाओं में दो जनों की संयुक्त युद्ध क्षमता इक्कीस बताई गई है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 2 
(b) 2 और 3
(c) केवल 3
(d) केवल 2
उत्तर - (b)
व्याख्या- ऋग्वैदिक कालीन सामाजिक संगठन 'जन' के संबंध में कथन ( 2 ) और (3) सत्य हैं। विश के समूह को जन कहा जाता था। ऋग्वेद में 'जन' शब्द का उल्लेख 275 बार मिलता है, जबकि जनपद शब्द का उल्लेख एक बार भी नहीं मिलता। इस समय लोग कबीले के अंग थे, क्योंकि तत्कालीन समय में राज्यक्षेत्र या राज्य स्थापित नहीं हो पाया था। ऋग्वेद की एक पुरानी ऋचा में दो जनों की संयुक्त युद्ध क्षमता इक्कीस बताई गई है।
कारण (1) असत्य है, क्योंकि ऋग्वेद यह वर्णित है कि किसी भी जन में सदस्यों की संख्या कुल मिलाकर 100 से अधिक नहीं होती थी।
8. व्यवसाय के आधार पर समाज में विभेदीकरण आरंभ हुआ था, किंतु उन दिनों यह विभेदीकरण अधिक जटिल नहीं था। किसी परिवार का एक सदस्य कहता है- मैं कवि हूँ, मेरे पिता वैद्य हैं और मेरी माता चक्की चलाने वाली है, भिन्न-भिन्न व्यवसायों से जीवकोपार्जन करते हुए हम एक साथ रहते हैं। यह विवरण किस काल की सामाजिक व्यवस्था का अधिक स्पष्ट विवरण प्रस्तुत करता है ?
(a) ऋग्वैदिक काल
(b) उत्तर वैदिक काल
(c) पौराणिक काल
(d) मौर्योत्तर काल
उत्तर - (a)
व्याख्या- ऋग्वैदिक काल प्रश्न में वर्णित सामाजिक व्यवस्था का स्पष्ट विवरण प्रस्तुत करता है। ऋग्वैदिक काल में व्यवसाय के आधार पर समाज में विभेदीकरण आरंभ हो चुका था, किंतु यह अधिक स्पष्ट नहीं था। ऋग्वेद में एक विशिष्ट विवरण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें एक युवा अपने माता-पिता के पृथक् व्यवसाय के बावजूद साथ रहने का जिक्र करता है। इससे यह तथ्य स्पष्ट होता है कि ऋग्वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित नहीं, बल्कि कर्म पर आधारित थी।
9. ऋग्वैदिक पारिवारिक संरचना के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. परिवार पितृतंत्रात्मक प्रकृति का था।
2. परिवार में वीर पुत्रों के लिए देवता से प्रार्थना की जाती थी।
3. पुत्री की कामना का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं मिलता है ।
4. प्रजा और पशु की कामना को हतोत्साहित किया गया है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1, 3 और 4 
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 2 और 3
(d) 1 और 2
उत्तर - (c)
व्याख्या- ऋग्वैदिक पारिवारिक संरचना के संबंध में कथन (1), (2) और (3) सत्य हैं।
ऋग्वैदिक समाज पितृतंत्रात्मक प्रकृति का था, जिसमें पिता परिवार का मुखिया होता था। परिवार की अनेक पीढ़ियाँ एक घर में साथ-साथ रहती थीं। निरंतर युद्ध में लगे पितृतंत्रात्मक समाज में लोग हमेशा वीर पुत्रों की प्राप्ति के लिए देवता से प्रार्थना करते थे। ऋग्वेद में पुत्री के लिए कामना कहीं भी व्यक्त नहीं की गई है।
कथन (4) असत्य है, क्योंकि ऋग्वेद में प्रजा (संतान) और पशु की कामना सूक्तों में बार-बार की गई है।
10. ऋग्वैदिक कालीन महिलाओं की स्थिति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. वे पतियों के साथ यज्ञ में आहुति नहीं दे सकती थीं।
2. उन्हें सूक्तों की रचना का अधिकार प्राप्त था।
3. बहुपति प्रथा का प्रचलन था।
4. बाल विवाह का प्रचलन था ।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 2 और 3
(b) 1, 2 और 3
(c) 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर - (a)
व्याख्या- ऋग्वैदिक कालीन महिलाओं की स्थिति के संबंध में कथन (2) और (3) सत्य हैं ।
ऋग्वेद में महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक थी। उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। उच्च शिक्षा प्राप्त कई महिलाओं ने अनेक सूक्तों एवं ऋचाओं की रचना की थी। इसमें लोपामुद्रा, घोषा आदि का नाम शामिल था। इस काल में बहुपति प्रथा का प्रचलन था। ऋग्वेद में नियोग प्रथा और विधवा-विवाह के प्रचलन का भी उल्लेख मिलता है।
कथन (1) और (4) असत्य हैं, क्योंकि ऋग्वेद में महिलाओं को पतियों के साथ यज्ञ में आहुति देने का अधिकार प्राप्त था। इस काल में बाल विवाह का कोई उदाहरण नहीं मिलता है।
11. ऋग्वेद के किस मंडल में सर्वप्रथम 'शूद्र' शब्द का उल्लेख एक वर्ण के रूप में हुआ है? 
(a) सातवें मंडल में 
(b) दसवें मंडल में
(c) आठवें मंडल में
(d) नौवें मंडल में
उत्तर - (b)
व्याख्या- 'शूद्र' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद के दसवें मंडल में मिलता है। चूँकि 10वाँ मंडल बाद में जोड़ा गया था, अत: इससे प्रतीत होता है कि शूद्र शब्द का प्रयोग ऋग्वैदिक काल के अंत में प्रचलन में आया था।
ज्ञातव्य है कि ऋग्वेद में 10 मंडल हैं, जिनमें 2 से 7 तक प्राचीनतम अंश हैं। पहला और दसवाँ मंडल सबसे बाद में जोड़े गए हैं।
12. वैदिक काल में लोहे के उपयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. भारत में लोहे का उपयोग 1000 ई. पू. से कुछ पहले प्रारंभ हुआ।
2. लोहे से बने औजारों से गंगा की घाटी के घने जंगलों को साफ किया गया।
3. लोहे के प्रयोग ने भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम नगरीकरण को जन्म दिया।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1, 2 और 3
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर - (b)
व्याख्या- वैदिक काल में लोहे के उपयोग के संदर्भ में कथन (1) और (2) सत्य हैं।
उत्तर प्रदेश के अतरंजीखेड़ा में लोहे का प्रथम साक्ष्य 1000 ई. पू. आस-पास का था। लोहे की प्राप्ति के पश्चात् ऋग्वैदिक लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आया। लोहे से बने औजारों का प्रयोग कर आर्यों ने जंगलों को साफ कर अपना विस्तार गंगा घाटी तक कर लिया।
कथन (3) असत्य है, क्योंकि लोहे के प्रयोग ने भारतीय उपमहाद्वीप में द्वितीय नगरीकरण को जन्म दिया था। प्रथम नगरीकरण हड़प्पा सभ्यता को कहा जाता है।
13. ताँबे या काँसे के अर्थ में किस शब्द के प्रयोग से प्रकट होता है कि ऋग्वैदिक आर्यों को धातुकर्म की जानकारी थी?
(a) बलि 
(b) अयस
(c) आहुति
(d) ताम्रपत्र
उत्तर - (b)
व्याख्या- ताँबे या काँसे के अर्थ में अयस शब्द के प्रयोग से स्पष्ट होता है कि ऋग्वैदिक आर्यों को धातुकर्म की जानकारी थी। कृष्ण या श्याम अयस लोहे को कहा जाता था। ऋग्वैदिक लोग ताँबे को राजस्थान के खेतड़ी से आयात करते थे तथा इसमें टिन का मिश्रण कर कांस्य का निर्माण किया जाता था। इससे स्पष्ट होता है कि उन्हें धातुकर्म की जानकारी थी।
14. ऋग्वैदिक कालीन व्यापार एवं वाणिज्य के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. ऋग्वेद में बढ़ई, रथकार, बुनकर आदि शिल्पियों के उल्लेख मिलते हैं।
2. व्यापार नियमित प्रकृति का था।
3. वैदिक जन का अधिक संबंध स्थल मार्ग से था। 
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 3 
(b) केवल 2
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर - (a)
व्याख्या- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार एवं वाणिज्य के संबंध में कथन ( 1 ) और (3) सत्य हैं।
ऋग्वेद में विभिन्न शिल्पियों का उल्लेख मिलता है। इनमें बढ़ई, रथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार आदि प्रमुख रूप से शामिल थे। इससे ज्ञात होता है कि आर्य लोगों में इन सभी शिल्पों का प्रचलन था।
आर्यजन या वैदिक जन का अधिकांश व्यापार स्थल मार्ग से होता था, क्योंकि ऋग्वेद में उल्लिखित ‘समुद्र' शब्द मुख्यतः जलराशि का वाचक है। कथन (2) असत्य है, क्योंकि ऋग्वैदिक काल में नियमित व्यापार के होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
15. ऋग्वेद में निम्नलिखित में किस देवता की स्तुति को संगृहीत नहीं किया गया है? 
(a) नासत्य
(b) वरुण
(c) प्रजापति
(d) मित्र त्र
उत्तर - (c)
व्याख्या- ऋग्वेद में 'प्रजापति' की स्तुति को संगृहीत नहीं किया गया है। 'प्रजापति' देवता का महत्त्व उत्तरवैदिक काल में बढ़ गया था। ऋग्वैदिक कालीन देवता का ऋग्वेद में इंद्र का 250 बार, अग्नि का 200 बार, वरुण का 30 बार, रुद्र का 3 बार, बृहस्पति का 11 बार तथा पृथ्वी का 1 बार उल्लेख मिलता है। नासत्य, वरुण तथा मित्र की स्तुति को संगृहीत किया गया है।
16. वैदिक धर्म के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. वैदिक धर्म इहलौकिक था।
2. धर्म में यज्ञों की प्रधानता नहीं थी ।
3. उपासना की विधि स्तुति पाठ पर आधारित थी।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं? 
(a) 1 और 2 
(b) 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) 1 और 3
उत्तर - (d)
व्याख्या- वैदिक धर्म के संबंध में कथन (1) और (3) सत्य हैं।
वैदिक धर्म पारलौकिकता में विश्वास नहीं करता था। यह इहलौकिक धर्म था। देवताओं की उपासना की मुख्य रीति स्तुति पाठ करना और यज्ञ बलि (चढ़ावा) अर्पित करना थी। ऋग्वैदिक काल में स्तुतिपाठ पर अधिक बल दिया गया था। स्तुति - पाठ सामूहिक भी होता था और अलग-अलग भी । सामान्यतः हर कबीले या गोत्र का अपना अलग देवता होता था। कथन (2) असत्य है, क्योंकि वैदिक धर्म में यज्ञों की मूल प्रधानता थी।

वेद

1. ऋग्वेद में इंद्र को 'पुरंदर' कहा गया है। पुरंदर का शाब्दिक अर्थ क्या है ? 
(a) शत्रुओं को पराजित करने वाला 
(b) दुर्गों को तोड़ने वाला
(c) वर्षा करने वाला
(d) दुर्ग की रक्षा करने वाला
उत्तर - (b)
व्याख्या- ऋग्वेद में इंद्र को 'पुरंदर' कहा गया है। पुरंदर का शाब्दिक अर्थ होता है— 'दुर्गों को तोड़ने वाला' । ऋग्वेद में सबसे अधिक प्रतापी देवता इंद्र थे। इंद्र को युद्धों में आर्यों का नेतृत्वकर्ता माना गया, जो अनार्यों के साथ युद्ध में आर्यों सहयोगी हैं।
2. पूर्व वैदिक आर्यों का प्रमुखतः धर्म था
(a) भक्ति 
(b) मूर्तिपूजा और यज्ञ
(c) प्रकृति पूजा और यज्ञ
(d) प्रकृति पूजा और भक्ति
उत्तर - (c)
व्याख्या- पूर्व वैदिक (ऋग्वैदिक कालीन) आर्यों का प्रमुखतः धर्म तथा पूजा-पद्धति प्रकृति पूजा और यज्ञ पर आधारित थे। ऋग्वेद में अनेक ऐसे देवता उद्धृत हैं, जिनका संबंध प्रकृति की विभिन्न शक्तियों का प्रतिरूप है।
देवताओं की उपासना की मुख्य रीति स्तुति पाठ तथा यज्ञबलि अर्पित करना था।
3. वैदिक ग्रंथों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में ब्राह्मण की जीविका का वर्णन है।
2. मंत्रों के संग्रह को संहिता कहा जाता है।
3. वैदिक संहिताओं के बाद 'ब्राह्मण' ग्रंथ की रचना हुई ।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) केवल 1 
(b) 1 और 2
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर - (d)
व्याख्या- वैदिक ग्रंथों के संबंध में सभी कथन सत्य हैं। ऐतरेय ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है। इसमें मुख्य रूप से ब्राह्मण की जीविका का वर्णन मिलता है। चारों वेदों को सम्मिलित रूप से संहिता कहा जाता है। ये मुख्यतः मंत्रों का संग्रह है। ब्राह्मण ग्रंथ की रचना संहिताओं की व्याख्या हेतु सरल गद्य में संहिताओं के बाद में की गई है। प्रत्येक वेद के लिए अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ की रचना की गई है।

उत्तरवैदिक काल

1. भारतीय उपमहाद्वीप में उत्तरवैदिक काल का उदय कब हुआ था?
(a) 1500 ई. पू. से 600 ई. पू. के बीच
(b) 1000 ई. पू. से 600 ई. पू. के बीच
(c) 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू. के बीच
(d) 800 ई. पू. से 200 ई. पू. के बीच
उत्तर - (b)
व्याख्या- भारतीय उपमहाद्वीप में उत्तरवैदिक काल का उदय 1000 ई. पू. से 600 ई. पू. के बीच हुआ था। इस काल में ही सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद की रचना हुई थी। इसके अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रंथों, आरण्यकों एवं उपनिषदों को रचना उत्तरवैदिक काल में ही हुई थी ।
2. उत्तरवैदिक काल में आर्यों के प्रसार के संबंध में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(a) इस काल में राज्य विस्तार पंजाब से बढ़कर कुरुक्षेत्र तक हो गया।
(b) गंगा-यमुना दोआब तक आर्य संस्कृति का विकास हुआ।
(c) पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में वैदिक ग्रंथों की रचना हुई।
(d) इस संस्कृति का मुख्य केंद्र मध्य प्रदेश था।
उत्तर - (c)
व्याख्या- उत्तरवैदिक काल में आर्यों के प्रसार के संबंध में कथन (c) सत्य नहीं है, क्योंकि उत्तरवैदिक कालीन वैदिक ग्रंथों की रचना पश्चिमोत्तर प्रांत में नहीं, बल्कि उत्तरी गंगा के मैदान में हुई थी।
इस युग में राज्य का विस्तार पंजाब से बढ़कर कुरुक्षेत्र (दिल्ली और गंगा यमुना दोआब का उत्तरी भाग) में आ गया था। इस संस्कृति का मुख्य केंद्र मध्य भारत बन गया। इसके अंतर्गत दिल्ली, पंजाब, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के भाग आदि शामिल थे।
3. उत्तरवैदिक काल में राजनीतिक संगठन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. राजा की शक्ति में वृद्धि हुई, वह स्थायी सेना रखने लगा ।
2. सभा तथा समिति की स्थिति में गिरावट दर्ज की गई।
3. इस काल में क्षेत्र के लिए राष्ट्र शब्द का प्रयोग नहीं होता था।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3 
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर - (a)
व्याख्या- उत्तरवैदिक काल में राजनीतिक संगठन के संबंध में कथन (1) और (2) सत्य हैं ।
उत्तरवैदिक काल में राज्यों की आकार वृद्धि से राजा की शक्ति में वृद्धि हुई, उसके पास स्थायी सेना हो गई।
इस समय में ऋग्वैदिक जनता वाली सभा-समितियों की स्थिति में गिरावट दर्ज की गई। उनकी जगह राजकीय प्रभुत्व आ गए। विदथ का नामोनिशान नहीं रहा। कथन (3) असत्य है, क्योंकि राष्ट्र शब्द, जिसका अर्थ-प्रदेश या क्षेत्र होता है, प्रथम बार इसी समय मिलने लगा था।
4. उत्तरवैदिक काल की सामाजिक स्थिति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. इस काल में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे।
2. इस काल में महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया।
3. इस काल में महिलाएँ सभा, समिति तथा विदथ में भाग लेती थीं।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
(a) 1 और 3
(b) 1, 2 और 3
(c) केवल 1
(d) 1 और 2
उत्तर - (a)
व्याख्या- उत्तरवैदिक काल की सामाजिक स्थिति के संबंध में कथन (1) और (3) असत्य हैं। उत्तर वैदिक काल में समाज में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट दर्ज की गई। महिलाएँ अब अधिक स्वतंत्र नहीं थीं। उत्तर वैदिक ग्रंथों में पुत्री जन्म को अच्छा नहीं माना जाता था।
इस काल में सभा, समिति तथा विदथ में स्त्रियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी।
कथन (2) सत्य है। इस काल में स्त्रियों को संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया।
5. उत्तरवैदिक समाज के संबंध में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(a) आश्रम व्यवस्था स्थापित हो गई थी
(b) वर्ण व्यवस्था जटिल हो गई थी
(c) गोत्र व्यवस्था स्थापित हो गई थी
(d) क्षत्रिय वर्ण-व्यवस्था में उच्च हो गए
उत्तर - (d)
व्याख्या- उत्तरवैदिक समाज के संबंध में कथन (d) सत्य नहीं है, क्योंकि उत्तरवैदिक काल में क्षत्रिय वर्ण-व्यवस्था में दूसरे स्थान पर पहुँच गए। उत्तरवैदिक समाज चार वर्णों में विभक्त था - ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यज्ञ का अनुष्ठान अत्यधिक बढ़ गया था, जिससे ब्राह्मणों की शक्ति में अपार वृद्धि हुई और वे वर्ण व्यवस्था में उच्च स्थान पर पहुँच गए।
6. उत्तरवैदिक कालीन देवताओं के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. प्रजापति सर्वोच्च देवता बन गए थे।
2. प्रजापति सृजन के देवता थे।
3. शूद्रों के देवता के रूप में 'पूषन' स्थापित हो गए।
उपर्युक्त में 'कौन-सा/से कथन सत्य है / हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2
(d) 1, 2 और 3
उत्तर - (d)
व्याख्या- उत्तरवैदिक कालीन देवताओं के संबंध में सभी कथन सत्य हैं। उत्तरवैदिक काल में ऋग्वैदिक काल के प्रमुख देवता द्यौ और अग्नि की लोकप्रियता में गिरावट आई तथा उनका स्थान प्रजापति ने ले लिया। प्रजापति सृजन के देवता थे। पशुओं के देवता रुद्र ने इस काल में महत्ता पाई। विष्णु को वे लोग अपना पालक और रक्षक मानने लगे। लोग ऋग्वैदिक काल में अपने अर्द्ध- खानाबदोशी जीवन को छोड़कर स्थायी रूप से बस गए थे। इस काल में 'पूषन' शूद्रों के देवता के रूप में स्थापित हुए। 
7. उत्तरवैदिक काल की अर्थव्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 
1. इस काल में जीविका का मुख्य साधन व्यापार था।
2. इस काल में जौं के साथ चावल और गेहूँ मुख्य फसल हो गयी।
3. इस काल में गैरिक मृद्भांड संस्कृति का विकास हुआ।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सत्य नहीं है ?
(a) केवल 3 
(b) 1 और 3
(c) 1 और 2
(d) 1, 2 और 3
उत्तर - (b)
व्याख्या- उत्तरवैदिक काल की अर्थव्यवस्था के संबंध में कथन (1) और (3) सत्य नहीं हैं, क्योंकि उत्तरवैदिक काल में जीविका का मुख्य साधन व्यापार नहीं, बल्कि कृषि एवं पशुपालन था।
इस काल में गैरिक मृद्भांड संस्कृति का नहीं, बल्कि चित्रित धूसर मृद्भांड संस्कृति का विकास हुआ था।
कथन (2) सत्य है, उत्तर वैदिक काल में जौ के साथ चावल और गेहूँ मुख्य फसल के रूप में स्थापित हुए।
8. उत्तरवैदिक काल में कृषि से संबंधित कथनों में कौन-सा सत्य नहीं है ?
(a) श्याम अयस से बने हल का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
(b) 'शतपथ' ब्राह्मण में हल के संबंध में वर्णन मिलता है।
(c) श्याम अयस का संबंध ताँबा से था।
(d) इस काल में संगृहीत का कार्य कृषि कर एकत्रित करना था।
उत्तर - (c)
व्याख्या- उत्तरवैदिक काल में कृषि से संबंधित कथनों में कथन (c) सत्य नहीं है, क्योंकि श्याम अयस का संबंध ताँबे से नहीं, बल्कि लौह से है। वैदिक काल के अंतिम दौर में लोहे का ज्ञान पूर्वी उत्तर प्रदेश और विदेह में फैल गया था। इन प्रदेशों में जो सबसे पुराने लौह अस्त्र पाए गए हैं, वे ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी के हैं और उत्तरवैदिक ग्रंथों में इस धातु को श्याम या कृष्ण अयस कहा गया है।
9. उत्तरवैदिक काल की धार्मिक स्थिति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. राजसूय यज्ञ पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता था।
2. अश्वमेध यज्ञ राज्य विस्तार के लिए किया जाता था।
3. वाजपेय यज्ञ दिव्य शक्ति के लिए किया जाता था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सत्य है / हैं ?
(a) केवल 3
(b) केवल 2
(c) 1 और 2
(d) 1, 2 और 3
उत्तर - (b) 49.
व्याख्या- उत्तरवैदिक काल की धार्मिक स्थिति के संबंध में कथन ( 2 ) सत्य है। अश्वमेध यज्ञ का आयोजन राज्य विस्तार के लिए किया जाता था। इस यज्ञ में राजा का घोड़ा छोड़ा जाता था। घोड़ा जिन-जिन क्षेत्रों से गुजरता था उन सभी क्षेत्रों पर राजा का एकछत्र राज्य माना जाता था। राजा राजसूय यज्ञ करता था, जिससे यह समझा जाता था कि उसे दिव्य शक्ति मिल गई। वह वाजपेय यज्ञ (रथदौड़) का आयोजन भी करता था, जो शौर्य प्रदर्शन एवं प्रजा के मनोरंजन हेतु किया जाता था।
10.उपनिषदों के संदर्भ में कथनों पर विचार कीजिए
1. इन ग्रंथों में यथार्थ विश्वास और ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।
2. उपनिषदों ने आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने पर बल दिया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर - (c)
व्याख्या- उपनिषदों के संदर्भ में दोनों कथन सत्य हैं। उत्तर वैदिक काल के अंत में 600 ई.पू. के आस-पास उपनिषदों की रचना हुई। इन दार्शनिक ग्रंथों में कर्मकांड की निंदा की गई है तथा यथार्थ, विश्वास तथा ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।
उपनिषदों में कहा गया है कि अपनी आत्मा के ज्ञान को ठीक प्रकार से जानना चाहिए। आत्मा तथा परमात्मा के बीच संबंधों को उपनिषदों ने परिभाषित किया। इसमें आत्मा, जीव, जगत, ब्रह्म जैसे गूढ़ दार्शनिक मतों को समझाने का प्रयास किया गया है।
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